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Thursday, November 1, 2012

जीना सीख लिया




साहिलों ने जब से दरिया से मुह मोड़ लिया
दरिया ने भी खुद में सिमटना सीख लिया
उसे भी बहुत दूर लगता है किनारे तक सफर
अपनी ही पलकों में मुस्कुराना सीख लिया
हर आती-जाती नावों से लिपट कर जीती है
मज़िलों को किश्तों में जीना सीख लिया
खुश होने की कीमत पलक भर आंसूं ही तो थे
खुशियों को देख पलकें झुकाना सीख लिया
तारीख उसकी वफाओं को जो नाम दे दे
उधार की ही सही जीना उसने सीख लिया
किनारों से बिछड़ कर कोई जी नहीं पाया
जिद से ही शायद से उसने जीना सीख लिया  
---डॉ अलोक त्रिपाठी (२०१२)

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