www.hamarivani.com

Sunday, April 19, 2015

आँसू: समेत लेते वो "सब" जो नहीं था हाथ की लकीरों में

आँसू: समेत लेते वो "सब" जो नहीं था हाथ की लकीरों में: अगर तोड़  लेते हम खुदाई से अपने रिश्ते सारे  समेत लेते वो "सब" जो नहीं था हाथ की लकीरों में  वो चाहते दम तोड़ गयी थीं तस्व्व...

समेत लेते वो "सब" जो नहीं था हाथ की लकीरों में

अगर तोड़  लेते हम खुदाई से अपने रिश्ते सारे 
समेत लेते वो "सब" जो नहीं था हाथ की लकीरों में 

वो चाहते दम तोड़ गयी थीं तस्व्वरो फकत जो 
होते वो भी मेरे आशना कर आये जिसे उसके हवाले 

बचा रखे है उसने तेरे सारे हक रहनुमा कहते है 
अदा कर देगा वो सब तेरी बेताब ख्वाइशों को 

क्या करू मै भी फकत एक इन्सान ही ठहरा 
क्यों न  बरसे सावन गमों के मुस्कुराने पे 

यूँ भी तो नहीं कि मुझे इतफाक नहीं उसके होने पे 
ये भी तो नहीं मालूम कैसे समझों इन सवालो में 

मज़बूरी यूँ कि उससे मुँह भी नही फेर सकता 
कैसे चलूँ आगे जो घिरा हूँ जो इन सवालों में 

© डॉ आलोक त्रिपाठी १९९२