हमने तो बिना बुत के ही आशिकी कर ली
कि बुत की जुस्तजू में बसर जिन्दगी कर ली
हर अक्स को दर्द की सूरत देने की कोशिश की
कि बादलों में उभरे तस्वीरों से दोस्ती कर ली
हयात के रुखसार पर उभरे जो भी सारे रंग
बस उन्ही से हमने दर्द की वन्दगी कर ली
उसने तो बस एक कशिश ही दी थी मुझे
वक्त ने ये न जाने कैसी मौसिकी कर ली
यूँ ही तो था की मेरे आसुओं की सूरत न थी
कि दिल लगा कर मैंने कैसी बुजदिली कर ली
ã डॉ आलोक त्रिपाठी 2013