Saturday, May 11, 2019
Thursday, May 9, 2019
ये बताओ न प्रिये, क्या मांगूगा उस वक्त
ये बताओ न प्रिये, क्या मांगूगा उस वक्त
जब ज़िन्दगी से मै आखिरी बार मिलूगां?
तुम्हें चाहने की ख्वाईस, या तुम्हारी चाहत?
चाहत को मै अपने शब्दों में कैसे समेटूगा?
या तस्वीर सी उभरेगी चाहत के फलक पर?
पर उस तस्वीर में सारे रंग कैसे भर पाऊगा?
उसी से हर सांस में चाहने की चाहत मांगी है
फिर तुमको खुदा अपना कैसे मान पाऊगा?
क्या फर्क पड़ा, जो तुम्हारी चाहत कम रही ?
न हो पाऊगा बेशर्म, बस उसी को मांग पाऊगा
हां मेरी सारी दुआ तेरी खुशीयों के सदके सही
फिर भी तुमको चाहू, ये दुआ न मांग पाऊगा
डा आलोक त्रिपाठी २९ अप्रैल २०१९
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