तुम ही मेरे अल्को के चिंतन में हो
तुम ही मेरे सांसो की पुरवईयों में में
तुम ही तो जीवन के पछुआ बयारो में हो
तेरे सांसो से उठती है दिल के सागर में मौजे
तुम ही तो जीवन के शाश्वत दर्शन में हो
तुम्हारे ओठो पे उगते ओस के गुलशन
जीती हुई बूंदों के नश्वर जीवन में हो
तुम ही तो अलौकिकता के बादल के घनश्याम हो
तुम ही तो समस्ती के सृजित साधन में हो
मानवता की मानवीय अभिवक्ति हो तुम
तुम ही तो रचना के बचपन में हो
माया की रचना के बचपन में हो
तुम ही तो विचलन के कारण में हो
तुम ही तो सरलता के भटकन में हो