हर हमसफर मंजिल नही होता
जब कभी मै उसकी तलाश था ही नही
फिर खुद को तराशने से क्या फायदा?
वो हर पल किसी और को ढूढ़ता रहा
मै बस खुद को ही और सवारता रहा
हर हमसफर मंजिल नही होता इश्क में
जान ही नही पाया, बस मासूम बना रहा
जब ये सच समझा तब बहुत देर हो गयी
उसकी तलाश में मै एक हमराह बना रहा
अप्रैल १२, २०१९ अलोक त्रिपाठी
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