ये मिजाज़, ज़माने की चलन, से कुछ खफा खफा सा रहता है
मंजिलों पे काबिज़ है जो शख्स, मुझसे कुछ डरा डरा सा रहता है
मेरा इल्म, मेरा हूनर, मेरी तबियत से इत्फाक नहीं रखते
मेरी हर कोशिश के बाद भी ये जमाना खफा खफा सा रहता है
और वो जो रूठ के चले गए मुझसे कभी हमेशा के लिए 'आंसू'
जाने क्यूँ उनकी यादो का मंझर मेरे दिल में जवां जवां सा रहता है
क्या कहूं की अब मुझको वईज की बातो से डर नहीं लगता
क्यूँ इस उम्र में भी दिल बच्चे की तरह रवां रवां सा रहता है
जिन्होंने कभी भी वफ़ा नहीं निभाई मुझसे अब तलक
उनके लिए लिए भी ये पैमाना क्यूँ भरा भरा सा रहता है
nice!!
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