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Saturday, September 1, 2012

और ये ही है मेरा सच






आज जो मेरे पास है, जब सिर्फ वो ही है मेरा हक  
वो ही मेरे माज़ी के पौधे पे लगा फल, 
तो फिर मै जो कर रहा हूँ वो ही है मेरा सच
जब उसकी मर्जी के बिना पत्ता नही हिलता 
जब मै "कर्ता" हूँ ही नही या कुछ कर ही नही सकता 
तो फिर ये हंगामा ही क्यूँ , ये धुंध किस बात की 
फिर मैंने भी वो ही किया जो मै कर सकता था !
और ये ही है  मेरा सच 
मै अपना सच परिभाषित का हक तुम्हे नही देसकता 
क्यूंकि तुम भी तो नही जानते मुझे पूरी तरह से 
मेरे सारे दर्द मेरी सारी तकलीफें, मजबूरियाँ 
मै कहाँ से क्यूँ मुड गया और कहाँ चला आया 
ये सिर्फ व सिर्फ मै जनता हूँ  या फिर "वो" 
फिर तुम कैसे निर्धारित कर सकते हो 
मै कहाँ कैसे और क्या गलत कर दिया !!
नही ये तुम्हारा पाप है इसीसे बचो 

© आलोक त्रिपाठी, 1988

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