उसने कुछ इस तरह सजा दी है गुनाहों की मेरे
कि रूठ कर छुप गया है बिना कुछ कहे
इंतजार हो मेरे टूट के बिखरने का शायद
देख रहा है मुझे कहीं से बिना कुछ कहे
जी रहा हूँ मै ख़ामोशी से इसी यकी पर
कि आके सम्हाल लेगा मुझे बिना कुछ कहे
गुमां है कि उसके तकलीफ की इन्तहां होगी
मुड के ख़ामोशी से चला गया बिना कुछ कहे
दर्द जाने से ज्यादे उसके तकलीफ का है
वक्त गुजरता है माफ़ी में बिना कुछ कहे
दर्द बढ़ता है तो निगाहें छलकती है मेरी
करीब आ रहा है अब वस्ल बिना कुछ कहे
डॉ अलोक त्रिपाठी २०१४
Kafi achchhi hai rachana
ReplyDeleteItna dard kyu h...
ReplyDeleteबहुत ही गहराईयों से निकली आवाज है यह जिसे बेहतरीन ढ़ग से लिखा गया है....बधाई...
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