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Tuesday, April 29, 2014

कि उसे अपनाना है तो उसे अपना न बना


वो जो जलता रहा उम्र भर चिराग बन कर
 उसके वफाओं का कुछ तो सिला दे पाता 
लहूलुहान जज्बातों का दर्द समाये पलकों पे 
सहमे आंसू, उंगलियों का किनारा तो दे पाता  

जिसका हाल जल रहा हो माझी के ख्यालों में 
उसके मुस्तकबिल की आरज़ू क्या करे ?
तमाम उम्र के दर्दो को हम क्या समहल पाते,
कुछ दूर साथ चलने का सहारा तो बन पाता 

लडखडाते चिरागों ने दी है गवाही कि 
उसकी बदनसीबी की जो मेरे दर तक ले आयी
पनाह न दे पाया उसे न सही उसके जिस्म को 
काँटों में उलझाने का दर्द मै तो न पाता 

जो कल की ठंढ में जम गया ज़माने की 
नजर में फकत  एक शक्श था लेकिन  
उसको बचा मुमकिन न था न सही 
काश अपना कह के एक बार गले तो लगा पाता 

मेरा रब उसे मेरे हिस्से की तकदीर भी उसे 
दे ही न पाया कि उसका दर्द बढ़ न जाये
तकदीर ने मुझसे बस इतना ही कहा 
कि उसे अपनाना है तो अपना न बना

ãडॉ आलोक त्रिपाठी (2009)

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