आज जो मेरे पास है, जब वो ही
मेरा हक़ है,
वो ही मेरे माझी के दरख्त पर
लगा फल …
फिर मै जो भी कर रहा हूँ वही
मेरा सच है.
मै कहाँ से क्यूँ मुड़ गया,
कहाँ आगया,
ये कोई और कैसे बता पायेगा
मुझे ?
कोई यूँ भी तो नही जिसने मुझे
देखा हो पूरा
उसकी मर्ज़ी के बिना पत्ता भी
नही हिलता
फिर ,मेरी गलतियां मेरे हिसाब
में क्यों डालते हो?
या जो कर सकता था उसमे से बचा
कैसे लिया?
हयात के फलसफे कागज़ों पे हु-ब-
हु उत्तर नही सकते
वरना मै भी अपनी गलतियों
गुनाहो का हिसाब देता
और फिर देखता वक़्त व् ज़माने की
मुंसिफ़ी
कुछ तो है ऐसा जिसे उसने सिर्फ
अपने लिए रखा है
और तुम्हे शायद नही
बनाया है मुंसिफ उसने
बेहतर ये ही होगा कि पूछो
मुझसे नाकामियों की वजह
कुछ तो बचा रहने दो मुस्तकबिल
के खातिर भी
इंतज़ार के मायनो को भी जिन्दा
रहने दो
मेरी कामयाबियां ही बया कर
देंगी मेरे इन्तहां का वजूद
(c) डॉ अलोक त्रिपाठी (1994)
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