तूफां को कभी तुमने सरगोशी से दबे पैरों से आते हुए देखा है?
मासूम कदमो को तन्हाइयों के तार बजाते हुए देखा है?
बीती किरदारों की उलझे शक्लों में अपनेपन की गवाही
तजुर्वों को छुए बिन नन्हे ख़्वाबों को पलको में आते हुए देखा है?
रिसते हुए जज्बातों से पिघलती मेरे वसूलों की दीवारें
सिमटने की कोशिश में, मौन लब्जों को उबलते हुए देखा है?
हौले -२ मेरी गहरी जड़ों को में समाती हुई उलझी ख्वाईसे
पल पल कमजोर बनकर रौशनी को बुझते हुए देखा है?
इसने ही बताया है आँक से अक़ीक़ को शिकस्त देने की अदा
कभी मासूम फूलों से संगदिल सनम को मुस्कुराते हुए देखा है ?
किनारे के दरकने में मिटटी की नसों में रिसता हुआ पानी
खुद में समा लेने के लिए अरमानों को सुलगते हुए देखा है ?
© डॉ आलोक त्रिपाठी २०१५
मासूम कदमो को तन्हाइयों के तार बजाते हुए देखा है?
बीती किरदारों की उलझे शक्लों में अपनेपन की गवाही
तजुर्वों को छुए बिन नन्हे ख़्वाबों को पलको में आते हुए देखा है?
रिसते हुए जज्बातों से पिघलती मेरे वसूलों की दीवारें
सिमटने की कोशिश में, मौन लब्जों को उबलते हुए देखा है?
हौले -२ मेरी गहरी जड़ों को में समाती हुई उलझी ख्वाईसे
पल पल कमजोर बनकर रौशनी को बुझते हुए देखा है?
इसने ही बताया है आँक से अक़ीक़ को शिकस्त देने की अदा
कभी मासूम फूलों से संगदिल सनम को मुस्कुराते हुए देखा है ?
किनारे के दरकने में मिटटी की नसों में रिसता हुआ पानी
खुद में समा लेने के लिए अरमानों को सुलगते हुए देखा है ?
© डॉ आलोक त्रिपाठी २०१५
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