मै तुम्हारी ज़ुल्फ़ों की तरह तुम्हारी मुश्किलें भी सुलझा लूंगा
बस इन आँधियों के बीच मेरे हुनर का इम्तिहान न लो।
मै तुम्हारी बेरुखी को भी तुम्हारी हक़ीक़त मान लूंगा
बस ज़रा इस तूफानों में मेरे वफाओं का इम्तिहान न लो
साहिल पे पहुचने तक मै हमसफ़र हूँ फिर ये सफर तुम्हारा
यूँ बीच में हाथ छुड़ा कर मेरी ताबेदारी का इम्तिहान न लो
मेरे फैसले पर न यकीन करो पर हवाओं का रुख तो समझो
बीच दरिया में कूद कर उसकी रहमत का इम्तिहान न लो
मै तो उसके क़ासिद के मानिंद हूँ जो इस पल तुम्हारे साथ हूँ
मुझे इस तरह नज़रों से गिरा उसके सब्र का इम्तिहान न लो
…………
© डॉ आलोक त्रिपाठी २०१५
Phenomenal!
ReplyDeleteThank You Shefali
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