मुझे जीने ही नही आता ये कह
मुझे हर बार जगाती रही माँ .
आज के बाद फिर कभी नही भूलूंगा
ये कह के खुद को सुलता रहा माँ
आज की रात आँखों की आखिरी बरसात है,
रातों के पंछी ये गीत गुनगुनाते गये
सुबह की लालिमा कही आँखों को सुर्ख न कर
ये कहते कहते पलक मेरे बुझते गये
हर रात बुने चंद अल्फाज़ हमने
अगली तारीख में वो ही मेरी तक़दीर होगये
अगले पल ही कौन सा तूफा आएगा
ये ही सवाल मेरे जेहन में एक तूफान हो गये
डॉ अलोक त्रिपाठी (१९९०)
(यह मैंने बहुत छोटे पर ही लिखी थी जाने आज क्यूँ याद आगयी )
Aaj phir maa ki daat padi hogi!vry nyc
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