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Friday, September 11, 2015

मुझे जीने ही नही आता


मुझे जीने ही नही आता ये कह 
मुझे हर बार जगाती रही माँ .
आज के बाद फिर कभी नही भूलूंगा
ये कह के खुद को सुलता रहा माँ 

आज की रात आँखों की आखिरी बरसात है, 
रातों के पंछी ये गीत गुनगुनाते गये 
सुबह की लालिमा कही आँखों को सुर्ख न कर 
ये कहते कहते पलक मेरे बुझते गये 

हर रात बुने चंद अल्फाज़ हमने 
अगली तारीख में वो ही मेरी तक़दीर होगये 
अगले पल ही कौन सा तूफा आएगा 
ये ही सवाल मेरे जेहन में एक तूफान हो गये 

डॉ अलोक त्रिपाठी (१९९०)
(यह मैंने बहुत छोटे पर ही लिखी थी जाने आज क्यूँ याद आगयी )

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