चाहता हूँ कि तुम्हे कहीं बहुत दूर ले जाऊं
ज़माने की निगाहों से तुमको छुपा के
तुम्हारे ख्वाबो के अस्मा के तले
तुम्हारी ख़्वाइसों के घनेरे बादलों की जमी पर
जहाँ तुम जी भर के जी सको एक पल में सारी जिंदगी
खुश हो सको जितना पहले कभी न हुए हो
लेकिन मै कहीं भी तुम्हारे करीब न रहूँ
पर हमेशा तुम मेरे निगाहों में रहो
क्योंकि मै तुम पर भी भरोसा नही करता तुम्हारे लिये
तुम्हारे लिए .....ये क्या कोई कैद होगी ?
नही जनता कब तक मै खुश रख सकता हूँ?
लेकिन जब भी मेरी ख्वाइसे तुम्हे जंजीर लगे
तुम मुझे बोल के कहीं भी चले जाना
पर तुम नही देख पाओगे कभी भी पिछली कहानी
मै तुम्हे कहीं, भी पीछे नही मिलूँगा इसलिए खोजना भी नही
फिर आगे का सफर सिर्फ तुम्हारा होगा
जिसमे तुम्हारी चुनी रहों पर तुम्हारी मंज़िल होगी
बिना किसी माझी के, फकत हाल के सहारे मुस्तकबिल् तक
चन्द सफ़ेद बिखरे पन्नें होगे बिना किसी इबारत या अक्स के
उनमे तुम कोई भी रंग भर सकते हो अपनी पसंद का
जैसा भी चाहो फिर पूरा कैनवास तुम्हारा ही तो है
-----डॉ अलोक त्रिपाठी २०१५
Very touchy
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