एक अरसे से खुद को समझाता आ रहा हूँ
धीर धरो एक बार शकु से बैठ कर बात करेंगे
गुजरे वक़्त का सलीके से हिसाब करेंगे
सबका हक हिस्सा उसके नाम करेंगे
साल दर साल गुजर गए, एहसास बदल गए
अब तो सपनों के भी भावार्थ बदल गए
पर आज तक वो वक़्त नही आया
अब तक खुद के इतने करीब नही आया।
--------------- आलोक त्रिपाठी
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