न गीत साथ दे रहें न, ही ये शाम साथ दे रही
शबनम से इतनी धुंध है नजर रौशनी को खो रही
आगे अँधेरी डगर है ये सोच कर भी चल रहे
कदम मेंरे है बढ़ रहे साँस जो ये चल रही
इस बात की खबर नही सहर कहाँ पे हो
इस बात की कसक नही शाम छोड़ आये
फलक कफन कर देना जो रात मेंही सो गये
ये खबर उन्हें भी हो कि हम जहाँ से खो गये
(बहुत पुरानी कुछ पंक्तियाँ याद आगयी)
(C) आलोक त्रिपाठी १९९०
No comments:
Post a Comment