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Sunday, June 21, 2015

प्रेम या आशक्ति

प्रेम शब्द का सन्धि विग्रह यूँ होता है
प्रेम=परा +ई +म। अर्थात जो शक्ति हमे उर्ध्व की ओर ले जाये वो 'प्रेम' है। आजकल की प्रचलित भाषा में हम जिसे प्रेम कहते है वो वास्तव में आशक्ति का ही एक स्वरूप है. जिसके तीन भेद होते है. 
वासना - क्षणिक एवं तीव्र आवेगित होती है
कामना - सामान गुणों के कारण उत्त्पन्न आशक्ति
एवं श्रद्धा-स्वयं से श्रेष्ठ होने के कारण उत्त्पन्न आशक्ति
सनातन धर्म में होने वाले विवाह में इन तीनो आशक्ति से होते हुए अन्तः मोक्ष को प्राप्त हुआ जा सकता है। विवाह के तुरंत बाद ही भोग की इच्क्षा से वासना उत्पन्न होती है जो साथ २ रहते २ कामना में बदलती जाती है। और अन्तः कामना इतना ज्यादे होजाती है कि श्रद्धा का स्वरुप ले लेती है

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http://legendofanomad.files.wordpress.com/2013/01/oie_18161755xwxttq28.jpg

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