तुम तो अगाज थे मेरे, अंजाम भी थे मेरे किरदार के
ख्वाबो के टूटे हर आईनों मे उभरे अक्स थे मेरे
वजुद को तुमने ही ऊकेरा था हाकीकत कि ज़मी पर
मेरी ख्वाइसो को दुआवों मे सम्हाले फनकार थे मेरे
फिजाओं मे बिखरी हँसी ने कितना सफर तय किया
कि उन्ही की खुसबू मे साँस लेती हुई ज़िन्दगी थे मेरे
इतने दूर होके भी पास होने के एहसास देते रहे मुझे
कितनी शिद्दत से लिखी एक हसीन गज़ल थे तुम मेरे
----(c) २०१७ डॉ आलोक त्रिपाठी
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