फिर दिल ने कहा कि लिखता ही रहूँ बस तेरे लिए
जज्बातों को सुलझता हूँ तो लब्ज़ उलझ जाते है
लब्जों को सुलझाता हूँ तो ख्वाब बिखर जाते है
फिर भी दिल करता है कि बस लिखता ही रहूँ तेरे लिए
वो इक अफसाना है, जो जिन्दा रहा हमेशा ख्वाबों में
लब्जों में न समाया कभी, बस सजता ही रहा ख्वाबों में
कुछ अजीब सा जादू था बस बहता ही गया तेरे संग
खुद एक तप्सरा बन गया इतराता ही रहा बस तेरे लिए
फिर भी दिल करता है कि बस लिखता ही रहूँ तेरे लिए
अभी भी ये सफर एक ख्वाब की मानिंद है लब्जों में
पर उम्र गुजरना चाहता हूँ इसी ख्वाब में तेरे लिए
जब भी चाहता हूँ महसूस करूँ तुम्हे अपने करीब
जाने कैसे हो जाता हूँ मै खुद के करीब बस तुम्हारे लिए
फिर भी दिल करता है कि बस लिखता ही रहूँ तेरे लिए
ये अफसाना भी कुछ आजोब सा है नही जिक्र किताबों में
जाने कैसी बन रही है नई दास्ताँ तुम्हारे साथ तुम्हारे लिए
हिम्मत भी नही कि नजर करूँ इस ख्वाब के उस पार
बस जी भर जी लूं और जीता ही रहूँ तुम्हारे साथ इसके साथ
फिर भी दिल करता है कि बस लिखता ही रहूँ तेरे लिए
(c) डॉ अलोक त्रिपाठी २०१७
No comments:
Post a Comment