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Sunday, November 5, 2017

मै तुम्हारे सुर में अपना सुर नही मिला पाउँगा 
माना कि ज़माने का चलन मुझे नही पता फिर भी 
जिसने इस सोच को पैदा किया वो 'गलतियाँ' नही करता 
इसलिए मै तुम्हारे सुर में अपना सुर मिला पाउँगा 

इसलिए मै तुम्हारे सुर में अपना सुर मिला पाउँगा 

जो भी सोच उसने मुझे दी है मै उसका ही संरक्षक 
क्यूंकि 'मै' तो कुछ हूँ ही नही न कुछ हो सकता हूँ 
मेरे रूप व् मेरे कृत्य में भी सिर्फ वो ही है और कुछ नही 
मै उसके शिकायक अधिकार भी नही दे पाउँगा 

इसलिए मै तुम्हारे सुर में अपना सुर मिला पाउँगा 

माफ़ करना मै तुमको भी तो कभी नही सिखाता हूँ कुछ 
मेरा सच अगर मुझे जीने का अर्थ देता है तो जीने दो मुझे 
मै अपने स्वार्थ के लिए अपना सत्य नही त्याग सकता हूँ 
मै तुम्हारे मानदण्डो पर खरा होने के लिए नही जी पाउँगा 

इसलिए मै तुम्हारे सुर में अपना सुर मिला पाउँगा 

मै अपने भावों को तुम्हारे शब्दों में नही व्यक्त कर सकता हूँ 
नही उसकी व्याख्या का अधिकार तुमको दे सकता हूँ
जो भी है वो बिलकुल शुद्ध है सात्विक है और सत्य है 
तुम्हारे अनर्गल व्याकरण का आवरण नही चढ़ा सकता हूँ  

इसलिए मै तुम्हारे सुर में अपना सुर मिला पाउँगा 

डॉ अलोक त्रिपाठी (c) २०१७ 

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