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तुम मिले थे एक मिसरा बन कर
शब् हुई तो ग़ज़ल मुकम्मल हुई
सुबह चुनता रहा ख्याब रात भर के
जाने कब मोहब्बत मुसलसल हुई
तुम बिन भी तो जिए जा रहे थे हम
जब तुम आये तो जिंदगी असल हुई
उम्र दीवार पर टंगे तारीखों सी फटती
तुम आये बस ख्वाबो की फसल हुई
वेखौफ्फ़, बनजारा बन भटकता रहा
तुमसे मिला तो जैसे खुद से वस्ल हुई
तेरे लिए भी तुझसे जुदा हो जाऊ मै
अबतक न उल्फत में ऐसी अज़ाल हुई
(C) २०१९ डॉ अलोक त्रिपाठी
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