www.hamarivani.com

Tuesday, September 17, 2019

शब् हुई तो ग़ज़ल मुकम्मल हुई

https://newheavenonearth.files.wordpress.com/2011/11
/hand-in-hand-with-the-sun.jpg



तुम मिले थे एक मिसरा बन कर 
शब् हुई तो ग़ज़ल मुकम्मल हुई 
सुबह चुनता रहा ख्याब रात भर के 
जाने कब मोहब्बत मुसलसल हुई 

तुम बिन भी तो जिए जा रहे थे हम 
जब तुम आये तो जिंदगी असल हुई 
उम्र दीवार पर टंगे तारीखों सी फटती 
तुम आये बस ख्वाबो की फसल हुई 

वेखौफ्फ़, बनजारा बन भटकता रहा
तुमसे मिला तो जैसे खुद से वस्ल हुई 
तेरे लिए भी तुझसे जुदा हो जाऊ मै 
अबतक न उल्फत में ऐसी अज़ाल हुई 

(C) २०१९ डॉ अलोक त्रिपाठी 

No comments:

Post a Comment