Sunday, April 28, 2019
आँसू: दिल को कईयों में तक्सीम करने का मौसम आया
आँसू: दिल को कईयों में तक्सीम करने का मौसम आया: चाहत को जब से किश्तों में निभाने का चलन आया यकीनन मोहब्बत से तौबा करने का मौसम आया जमाना घुटन महसूस करने लगा किसी एक के साथ में ...
दिल को कईयों में तक्सीम करने का मौसम आया
चाहत को जब से किश्तों में निभाने का चलन आया
यकीनन मोहब्बत से तौबा करने का मौसम आया
जमाना घुटन महसूस करने लगा किसी एक के साथ में
गजब की दुनिया ये, बरसात में प्यासे मरने का मौसम आया
हम तो किसी एक की चाहत में फना होना ही समझ आया
पर उसने चाहत को कई चेहरे में बाटने का मन बनया है
फिर कभी तफ्सील से लिखूंगा फायदे नुकसान का हिसाब
फ़िलहाल तो उनकी शर्तों में सर झुकाने का मौसम आया
सारी मुश्किलें तो सुलझा लिए फ़क्त एक सवाल के सिवाय
एक दिल को कईयों के बीच तक्सीम करने का मौसम आया
डॉ आलोक त्रिपाठी २०१९
Wednesday, September 26, 2018
मै जो इनके साथ होता हूँ रब साथ होता है
कुछ लोगों सवरना किसी एक के लिए होता है
जिन्दगी का सबब किसी का मुस्कुराना होता है
लोग कहते है इसे ही इबादत, इसे ही तिजारत
मेरा सर भी ऐसे ही इबादतों में झुका होता है
उसके ख्यालों या उसके ‘ख्वाबों’ में गुम होता है
वक्त का हर मंझर में एक ही अक्स बना होता है
वो जो लगता है जी रहे खुद के लिए गलत है शायद
उनका जिन्दगी जीना उस ख्वाब का जीना होता है
कभी वक्त मिले तो फुर्सत से तप्सरा करूंगा
कैसे कोई ख्वाब जीने की वजह बन जाता है
कैसे वो जी लेते है एक एहसास के साये में
सर झुकता हूँ रब का जो इनका साथ दिया मुझे
मै जो इनके साथ होता हूँ रब साथ होता है
---डॉ अलोक त्रिपाठी
Thursday, September 20, 2018
तेरे लिए रब से क्या मांगू?
दौलत मांगू, शोहरत मांगू, या सारी कायनात मांग लूं
ज्यादे क्या मांगू, सोचता हूँ कि उसकी रज़ा मांग लूं
मेरे ख्वाबों की ताबीर बन कर आये मेरी जिन्दगी में
इसीलिए सोचता हूँ बस असर अपनी दुआ में मांग लूं
सजाऊ, सवारू, अपना लूं, छुपा लूं अपने ही आगोश में
अपनी सांसों भर तेरी तकदीर में अपना किरदार मांग लू
मै जनता हूँ अपनी हकीक़त जो अब्तर है तेरी नजर में
सवाल मेरा ये कि मै अपनी चाहतों में शिफा मांग लूं ?
चलो मै अभी भी एक गैर हूँ, एक पहचाना हुआ अजनबी
बेहतर ये होगा कि मै तेरी ही असर तेरी ही दुआ में मांग लूं
-डॉ आलोक त्रिपाठी २०-०९-२०१८
Monday, May 14, 2018
ऐ आजनवी....
मेरे आंसूँ को अपने आँखों का सैलाब बना लेते हो
ऐ आजनवी मेरी खुशियों मे एक ज़िन्दगी जी लेते हो
तुमसे कोई रिश्ता जोडने की गुस्ताखी न्ही कर सकता
गैर बन कर ही तुम मेरी सारी दुनिया सजा लेते हो
एक मासूम ने एक मजलूम को खुदा बना पूजा है
अपनी हर ख़ुशी उसने किसी पे यूँ ही कुर्बां कर दी
खुद को यूँ भूलाय़ा है जैसे जीने के लिए आया ही न्ही
कैसे किसी की ईबादत मे इक ईबादत बन जी लेते हो
तुमने ही चिरागों को सिखाया है जल कर रौशन करना
किसी की रहनुमाई मे खुद को चिराग बनाने का हुनर
कभी खुद की तकलीफों से दोचार हुएे बिना ज़िन्दा रहे
कैसे यूँ गैरों के लिए कोई पल पल घुट घुट कर जी लेते हो
खुदा ने तुमको कुछ बहुत खास सा दिल अता फर्माया होगा
खुद के लिए मरने वालों की भीड मे फरिश्ता बनाया होगा
वरना इंसानो ने कब से इंसानो के ज़ख्म पर दवा लगाया है
फकत इंसान नही हो जो दुसरे के हिस्से का जहर पी लेते हो
.... © डा अलोक एस एन त्रिपाठी २०१८
...बिना रिश्ते के एक नाम दे जाऊँगा
जाने के बाद कुछ आँखो में नमी छोड जाऊँगा
मैं अपने किरदार में कुछ एहसास जोड जाऊँगा
चाहे कोई याद करे ना करे अपनी उम्र तक मुझको
य़ादों का मखमली मासूम सिलसिला छोड जाऊँगा
रंज होगा उन्हे भी जो छोड गए अपने ख्वाबो के लिए
जीते जी अपनी आवारगी का वो एहसास छोड जाऊँगा
मुझे भी वो याद रखे अपनी दुवाओं में कभी ना कभी
य़ादों का अपनी वो मुसलसल सिलसिला छोड जाऊँगा
नहीं जाया नहीं होंगी चाहते किसी एक शक्स के लिए
अब मैं चाहतों को, बिना रिश्ते के एक नाम दे जाऊँगा
.... © डॉ अलोक त्रिपाठी 2018
मैं अपने किरदार में कुछ एहसास जोड जाऊँगा
चाहे कोई याद करे ना करे अपनी उम्र तक मुझको
य़ादों का मखमली मासूम सिलसिला छोड जाऊँगा
रंज होगा उन्हे भी जो छोड गए अपने ख्वाबो के लिए
जीते जी अपनी आवारगी का वो एहसास छोड जाऊँगा
मुझे भी वो याद रखे अपनी दुवाओं में कभी ना कभी
य़ादों का अपनी वो मुसलसल सिलसिला छोड जाऊँगा
नहीं जाया नहीं होंगी चाहते किसी एक शक्स के लिए
अब मैं चाहतों को, बिना रिश्ते के एक नाम दे जाऊँगा
.... © डॉ अलोक त्रिपाठी 2018
कुछ टूटे हुए कांच
तुम्हारा हुसन एक गज़ल एक ख्वाब है मेरे हायात का
तुमसे मिला तो मुझे लगा, जैसे मैं ज़िंदा हूँ तुम्हारे लिए
अलोक
तुम्हारी हर ह्रफे वफा पर कायम है ये साये जहां मेरा
ये कैसे कहुं कि एक तेरी बेरुखी से दारक्ता है ये साया
अलोक
पैमाने मे भी ज़िन्दगी के कई रंग छलकते,
कभी गज़ल कभी मिसरा बन टपकते है
दो घुंट मे जब उनकी य़ादों मंजर जवां हो
तो आँखो मे शाम के स्याह साये उभरते है
अलोक
दर्द हैं दिल में पर इसका ऐहसास नहीं होता,
रोता हैं दिल जब वो पास नहीं होता,
बरबाद हो गए हम उनकी मोहब्बत में,
और वो कहते हैं कि इस तरह प्यार नहीं होता
अलोक
दिल की अदालत ने उसे कभी मुजरिम नही कुबूला
उसके हर गुनाह की तर्के ए वफ़ा हम रखते है
अलोक
मुस्कुराना इतना मुश्किल भी होगा कभी सोचा भी न था
ज़ितना कभी अदा न कर पाऊँ वो कीमत चेहरा मांगता है
अलोक
मेरी शामो-सुबह गिरवी है मेरे हसरतों के दर पर
मुझे कुछ वकत ख्वाइसों को मुझसे जुदा रहने दे
अलोक
मैं वो ख्वाब नही ज़िसे सजा ले कोई अपनी पलको पे
चन्द बिखरे पन्नो में सिमटी ये हिकायत है मेरी
अलोक
राहों में उन्ही पत्थरों पर सर पटकना पडा
जिनको मेरे दर्द का कोई इल्म ही ना था
अलोक
कुछ तो दर्द पिघले और मैं कुछ लिखूँ
ज़मा हुआ दर्द सीने में ही सूख रहा है
अलोक
मैं तो बस खुद की ही य़ादो में बिखरता गया
कहाँ किसी ने अपनी चाहत का इजहार किया
मैं ही पत्थर को खुदा बनाने जिद्द पर अडा रहा
बिखरना तो अंजाम था, य़ादो का काफिला भी गया
अलोक
रात भर का सफ़र है
और बेचारा चाँद तनहा
बस एक ग़ज़ल का साथ
गुजर जाये ये उम्र तन्हा
अलोक
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